रामझरोखा कैलाशधाम : अभिषेक, गुरु पूजन, गौसेवा व सत्संग के साथ मनाया गुरु पूर्णिमा महोत्सव

 

रामझरोखा कैलाशधाम : अभिषेक, गुरु पूजन, गौसेवा व सत्संग के साथ मनाया गुरु पूर्णिमा महोत्सव
रामझरोखा कैलाशधाम : अभिषेक, गुरु पूजन, गौसेवा व सत्संग के साथ मनाया गुरु पूर्णिमा महोत्सव

*राष्ट्रीय संत श्री सरजूदास जी महाराज से सैकड़ों शिष्यों ने पहनी कंठी, सेवा, संस्कार व सद्मार्ग पर चलने की दी सीख*

बीकानेर। सुजानदेसर स्थित रामझरोखा कैलाशधाम में गुरु पूर्णिमा एवं राष्ट्रीय संत श्री सरजूदासजी महाराज का जन्मोत्सव भक्ति भाव के साथ मनाया गया। सुबह से लेकर देर रात्रि तक हजारों श्रद्धालुओं का आवागमन रहा। राष्ट्रीय संत श्रीसरजूदासजी महाराज ने अलसुबह नर्बदेश्वर महादेव का रुद्राभिषेक किया। इसके बाद परमहंस परम पूजनीय श्री सियाराम जी महाराज का अभिषेक व चरण वंदना की। पूजनीय श्री रामदासजी महाराज का पूजन व पुष्पवर्षा की गई तथा गौशाला में गौपूजन व गौसेवा के कार्य किए गए। इसके बाद शुरू हुआ गुरु दीक्षा समारोह जो शाम तक निरन्तर जारी रहा। खास बात यह रही कि सैकड़ों महिला-पुरुषों ने रामझरोखा कैलाशधाम के पीठाधीश्वर श्रीसरजूदासजी महाराज से कंठी प्राप्त कर गुरु मंत्र सुना व गुरु पूजन किया। गायक नवदीप बीकानेरी के सान्निध्य में भजन-सत्संग का आयोजन सम्पन्न हुआ। गुरु पूर्णिमा महोत्सव में श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय संत श्री सरजूदासजी महाराज ने कहा कि युगों-युगों से गुरु-शिष्य परम्परा चली आ रही है। गुरु पूर्णिमा का दिन शिष्य के लिए तो महत्व रखता ही है साथ ही गुरु को भी गौरवान्वित करने वाला अवसर होता है। समय इतना बदल गया है कि लोगों में धैर्य की कमी हो गई है और सांसारिक जीवन में छोटी-छोटी बातों पर आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं। ऐसी परिस्थितियों में गुरु की सकारात्मक ऊर्जा शिष्यों के लिए वरदान साबित होती है। इसीलिए कहा भी गया है कि गुरु हमेशा सद्मार्ग दिखाते हैं, जीवन को जीने का ढंग सिखाते हैं। राष्ट्रीय संत श्रीसरजूदासजी महाराज ने श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि गुरु: साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:॥ अपनी महत्ता के कारण गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा पद दिया गया है। शास्त्र वाक्य में ही गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। गुरु को ब्रह्मा कहा गया क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। संत कबीरदासजी का भी कहना है हरि रुठे गुरु ठौर है, गुरु रुठे नहीं ठौर। इसलिए हर व्यक्ति को गुरु पूर्णिमा पर अवश्य गुरु के दर्शन व पूजन करने चाहिए।

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