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रिश्तों को याद रखना व निभाने की सच्चाई का एक रास्ता संस्कारों से होकर गुजरता है |
आजकल की भाग दौड़ वाली जिंदगी मे रिश्तों को याद रख पाना नामुमकिन सा होने लगा है या यह भी कह सकते है कि रिश्तों का महत्व कम होने लगा है । रिश्तों को याद रखना व निभाने की सच्चाई का एक रास्ता संस्कारों से होकर गुजरता है । जिस प्रकार आज के युग मे माता पिता द्वारा बच्चों को मोबाइल और internet की शिक्षा उनके बिना कहे ही दी जा रही हैं,ठीक उसी प्रकार हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपने बच्चों मे संस्कारों की ऐसी ज्योति प्रज्वलित करें जिससे उन्हें हमेशा रिश्तों की समझ,समाज मे परिवार की महत्ता समझ आ सके । जन्म लेने वाला प्रत्येक शिशु जो बचपन से युवा होने तक का सफर तय करता है उसमे परिवार के सभी सदस्यों का योगदान होता है लेकिन उसमे भी सबसे महत्वपूर्ण योगदान दादा-दादी और नाना-नानी का होता है और उसके बाद मम्मी-पापा का । जब हम बच्चों को उंगली पकड़कर चलना , उठना, बैठना, दौड़ना, खाना-पीना, अच्छे-बुरे मे फर्क़ करना, बुराइयों से दूर रहना , अच्छाइयों को अपनाना ये सब कुछ सीखा सकते है तो क्या हम आज की पीढ़ी को रिश्तों के बारे मे बताकर उनकी कद्र करना नहीं सीखा सकते । मैंने सुना है और अनुभव भी किया है कि बच्चे गिली मिट्टी की तरह होते है जिनको जिस तरह का आकार देंगे वो वैसे ही बन जाएंगे । मेरे बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद और उनके द्वारा मुझ मे जिंदा उनके संस्कारों की एक छोटी सी मिसाल के रूप मे मेरी एक पहल जो मुझे मेरे ताऊ जी और पापा जी के सपने को पूरा करने की इच्छा से मिली है, को सफल बनाने के लिए मेरे दादा जी स्वर्गीय श्री चम्पा लाल जी आचार्य -दादी जी स्वर्गीय अणदा देवी आचार्य के पूरे परिवार चौथी पीढ़ी तक को आमंत्रित किया है ताकि सभी एक साथ दादाजी चम्पा लाल जी आचार्य की वंशावली के रूप मे उपस्थित होकर परिवार की एकजुटता के साक्षी बने । आज मैंने ये कार्यक्रम इसलिए रखा है क्योंकि मेरी तहेदिल से इच्छा थी कि आज परिवार की तीसरी और चौथी पीढ़ी जो रिश्तों को भूलने की तरफ बढ़ रही है, उनको मैं अपने दादा दादी यानी उनके पड़ दादा दादी और पड़ नाना नानी के परिवार के सभी सदस्यों को एक फ्रेम एक तस्वीर के द्वारा रिश्तों को जिंदा रखने का प्रयास कर सकूं । आज मैं अपने सभी भाई बहनो को आचार्य परिवार की वंशावली की तस्वीर भेंट करना चाहूँगा जो हमे हर पल एक पेड़ रूपी परिवार मे उसकी शाखाओं रूपी रिश्तों की हर पल याद दिलाती रहेगी जो हमारे दादा दादी जी ने संस्कारों, उम्मीदों और भावनाओं से सींचकर विशाल वटवृक्ष बना दिया है ।
इस कार्यक्रम को नवल किशोर आचार्य स्व चंपालाल जी के पौत्र द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसमें समस्त परिवारजनों को वंशावली की तस्वीर भेंट की गई जिसमें समस्त पौत्रों को दादा जी की वंशावली तथा बहनों को पिताजी की वंशावली दी गई ताकि परिवार की चौथी पीढ़ी तक परिवारजनों को जानने-समझने मे सहायता हो और रिश्तों की कदर करते हुए अपनत्व महसूस कर सके ।